बाबा भीमराव अम्बेडकर का जन्म, माता पिता, उपलब्धियां और मृत्यु कैसे और कब हुई?

आज हम लोग इस आर्टिकल में चर्चा करने जा रहे हैं कि भारत के पहले कानुन मंत्री और समाज सुधारक बाबा भीमराव अम्बेडकर का जीवन किन परिस्थितियों में से गुजरा। भीम राव अम्बेडकर का जन्म उस समय पर एक नीची जाति समझी जाने वाले समुदाय में हुआ था। इस कारण उन्हें बचपन में काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा था। लेकिन बाबा भीमराव अम्बेडकर ने उन सभी परेशानियों को दरकिनार करके बडी मेहनत से अपनी पढ़ाई पूरी की और भारत के संविधान के निर्माता बने।

बाबा भीमराव अम्बेडकर का जन्म कब और कहां हुआ था?

बाबा भीमराव अम्बेडकर का जन्म 14 अप्रैल 1896 को मध्य प्रदेश के छोटे से गांव महु में हुआ था। बाबा भीमराव अम्बेडकर का जन्म एक बहुत ही गरीब परिवार में हुआ था।

बाबा भीमराव अम्बेडकर के माता पिता का क्या नाम है?

बाबा भीमराव अम्बेडकर की माता का नाम भीमाबाई और पिता का नाम रामजी मालोजी सकपाल था। भीम राव अम्बेडकर का सरनेम भी पहले सकपाल ही था। बाबा भीमराव अम्बेडकर का परिवार एक निम्न समुदाय से ताल्लुक रखता था। इसलिए उन्हें बचपन से ही बहुत सी सामाजिक परेशानियों का सामना करना पड़ा था

बाबा भीमराव अम्बेडकर बचपन में बहुत ज्यादा इंटेलिजेंट थे। लेकिन गांव में स्कूल नहीं होने की वजह से उन्हें दुर दराज के गांवों में शिक्षा के लिए जाना पड़ता है। लेकिन निम्न जाति से होने के कारण उन्हें बहुत ज्यादा सामाजिक भेदभाव से गुजरना पड़ता था। जिसके चलते उनके पिताजी ने उनका सरनेम बदलकर उनके गांव के नाम आंबडवेयर पर कर दिया था। इस प्रकार इनका नाम भीमराव आंबेडवेयर हुआ था।

आंबेडवेयर से इनका नाम अंबेडकर कैसे पड़ा?

बाबा भीमराव अम्बेडकर के नाम में आंबेडवकर की जगह अंबेडकर सरनेम पड़ने का किस्सा भी स्कूल के दिनों का है। बाबा भीमराव अम्बेडकर पढ़ने लिखने में बहुत तेज थे

इसलिए इसलिए वह सभी शिक्षकों के प्रिय थे। उनमें से एक शिक्षक का नाम कृष्ण महादेव अंबेडकर था। जो बाबा भीमराव अंबेडकर से बहुत स्नेह करते थे ।उन्हीं के नाम सरनेम अंबेडकर पर बाबा भीमराव अंबेडकर का सरनेम अंबेडकर पड़ा था। इसके बाद उनका नाम बाबा भीमराव अम्बेडकर पड़ा और वो इसी नाम से जाने जाने लगे।

बाबा भीमराव अम्बेडकर देश के पहले कानून मंत्री कैसे बनें?

बाबा भीमराव अम्बेडकर को बचपन में नीची नीची जाति गांव आने की वजह से बहुत ज्यादा सामाजिक भेदभाव का सामना करना पड़ा। उन्हें सामाजिक मटके से पानी तक नहीं पीने दिया जाता था। उन्हें कई बार क्लास से भी बाहर निकाल दिया गया था। एक बार का किस्सा है कि बारिश हो रही थी और वह स्कूल से आते टाइम एक दीवार के नीचे खड़े हो गए लेकिन निचली जाति गांव आने की वजह से उन्हें दीवार के पास तक खड़ा नहीं होने दिया।

इसके बाद से ही उन्होंने देश में जातिगत भेदभाव खतम करने की प्रयास के लिए दिन रात मेहनत की और भारत के पहले कानून मंत्री बन कर देश के संविधान निर्माता बने। उन्होंने संविधान में निचली जातियों के लिए कुछ विशेष रूप से छुट प्रदान की।

बाबा भीमराव अम्बेडकर के जीवन की उपलब्धियां?

बाबा भीमराव अम्बेडकर की शादी 15 साल की उम्र में 9 साल की रमाबाई से हुई। साल 1913 में बाबा भीमराव अम्बेडकर ने कोलंबिया यूनिवर्सिटी में दाखिला लिया। इसके लिए बड़ौदा के राजघराने ने उनको वजीफा दिया। जिसकी बदौलत वो अपनी पढ़ाई पूरी कर पाए। बोम्बे हाईकोर्ट में इन्होंने वकालत करते हुऐ दलितों के हक के लिए लड़ाई लड़ी।

1936 में जातिगत भेदभाव पर एक किताब भी लिखी, जिसका नाम था ‘जाति का बीजनाश’ । बाबा भीमराव अम्बेडकर की इस किताब की पुरे देश में बहुत सरहाना मिली। इसके बाद उन्होंने 1946 में एक ओर किताब लिखी जिसका नाम था ‘हु वर द शुद्राज’ इस किताब में उन्होंने आर्यों को लेकर चल रहे सिद्धांतो को भी खारिज किया। देश की आजादी के बाद वे देश के पहले कानून मंत्री बने।

जाति प्रथा के चलते उन्होंने कहा था कि देश तब तक तरक्की नहीं कर सकता जब तक कि नीची जाति का हिंदू मुस्लिम समाज ऊपरी जाति की राजनीति से मुक्त नहीं हो जाता। उन्हें 29 अगस्त को संविधान सभा की ड्राफ्टिंग कमेटी का चेयरमैन बनाया गया था।

दो साल बाद इस सभा ने बाबा भीमराव अम्बेडकर द्वारा लिखे गए संविधान को अपना लिया गया था। बाबा भीमराव अम्बेडकर ने 1951 में देश के कानून मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था क्योंकि संसद ने उनके एक ड्राफ्ट को लेकर देरी की थी। जिसमें महिलाओं को अपनी पैट्रिक संपत्ति में समान अधिकार की मांग की गई थी।

बाबा भीमराव अम्बेडकर की मृत्यु कब हुई?

बाबा भीमराव अम्बेडकर ने बौद्ध धर्म को बहुत करीब से जानने के बाद 1956 में बौद्ध धर्म को अपना लिया था। इसी साल 6 दिसंबर 1956 को बाबा भीमराव अम्बेडकर की मृत्यु हो गई थी। बाबा भीमराव अम्बेडकर ने संविधान लिखते हुए कहा था कि हम सबके अच्छा संविधान बना सकते हैं, लेकिन उसकी कामयाबी देश को चलाने वालो के हाथ में होगी।

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